गोसेवा – गोमांसादि भक्षण: विधि-निषेध एवं वैदिक विवेचन
गोमाता की सेवा एवं रक्षा पर आधारित यह ग्रंथ वेद, स्मृति, पुराण और धर्मशास्त्रों के प्रमाणों के साथ यह स्पष्ट करता है कि गोमांस भक्षण सनातन धर्म के विरुद्ध है। शास्त्रों के आधार पर इसके विधिनिषेध का गम्भीर विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
"गोसेवा – गोमांसादि भक्षण: विधिनिषेध विवेचन" एक तात्त्विक एवं शास्त्रसम्मत ग्रंथ है जिसमें गौ माता की महिमा, सेवा का आध्यात्मिक फल, तथा गोमांस भक्षण के पाप और निषेध का विस्तार से प्रतिपादन किया गया है।
इस ग्रंथ में:
वेदों (विशेषतः ऋग्वेद, अथर्ववेद) के मंत्रों से गौ की महिमा
मनुस्मृति, महाभारत, पुराण आदि में गोहत्या के निषेध के प्रमाण
आधुनिक और पारम्परिक वैदिक दृष्टिकोण का तुलनात्मक विवेचन
गौ-सेवा को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साथ जोड़ने का विश्लेषण
श्लोक उदाहरण (ग्रंथ में उद्धृत):
> श्रतोऽतियन्याः वजगीरमण्यः स्तन्यामृतं पीतमतोव ते मुदा ।
थाना विभो उत्सतरात्मजात्मना यत्तृप्तयःद्यापि न चालनःवराः ।।
इस श्लोक में वेदों द्वारा गौ के अमृततुल्य दुग्ध को पीकर भी देवताओं की संतुष्टि का वर्णन है – यह गौ की दिव्यता और सेवा की महिमा का प्रमाण है।