व्रज के रसिकाचार्य (Braj Ke Rasikacharya) O. B. L. Kapoor
The purpose of this scripture is to acquaint readers with the characters and principles of the devotees of all sampradayas, to inspire them, and to provide an opportunity to select useful material for their own spiritual practice from the vast field of their rasa-based worship. The entire work acknowledges their affectionate support and suggestions.
'व्रज के रसिकाचार्य' के इस द्वितीय खण्ड में चैतन्य सम्प्रदाय के रसिकाचार्यों को छोड़ व्रज के सभी रसिकाचार्यों के चरित्र दिये गये हैं । चैतन्य सम्प्रदाय के रसिकाचार्यों के चरित्र इसके प्रथम खण्ड में प्रकाशित हैं । दोनों खण्डों में विभिन्न सम्प्रदायों कै प्रधान रसिकाचार्यों के चरित्र के साथ उनके सिद्धान्त का विस्तृत विवरण किया गया है 'व्रज की रसोपासना' नाम के एक पृथक् ग्रन्थ में, जो इस समय प्रेस में है । उसमें व्रज की रसोपासना के सामान्य स्वरूप और उसके मूल सिद्धान्तों पर भी प्रकाश डाला गया है ।
लेखक का विश्वास है कि व्रज की रसोपासना की विभिन्न विधाओं में भागवत भेद होते हुए भी उसका एक सामान्य रूप है, जिसके मूल सिद्धान्त व्रज थे सभी सम्प्रदायों को मान्य हैं । इसलिये रसोपासना के साधक यदि अपने सम्प्रदाय के प्रति निष्ठावान् रहते हुए अन्य सम्प्रदायों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखें तो वे उनके रस-सिद्ध आचार्यों के आदर्श चरित्र से अच्छी प्रेरणा ग्रहण कर सकते हैं और उनके ग्रन्यों और वाणियों में संचित बहुमूल्य सामग्री का अपनी साधना में उपयोग कर उसे पुष्ट कर सकते हैं, उसे और अधिक सरस और लाभप्रद बना सकते है ।
इस ग्रन्थ का उद्देश्य है उन्हें सभी सम्प्रदायों के रसिकाचार्यों के चरित्र और उनके सिद्धान्त से परिचित करा उनसे प्रेरणा ग्रहण करने और उनकी रसोपासना के विशाल क्षेत्र से अपनी साधना के लिये उपयोगी सामग्री चयन करने का अवसर प्रदान करन समूचे ग्रन्थ में उनके स्नेहपूर्ण सहयोग और सुझावों के लिये ।





















