श्रीगौरांगचन्द्रोदय (Sri Gauranga Chandrodaya) Haridas Shastri
श्रीगौरांगचन्द्रोदयः सटीकः (वायुपुराणोक्त)
"अनर्पितचरीं" श्लोक सहित | प्रभाटीका: श्रीरामनारायण गोस्वामी | टीका: श्रीजीव गोस्वामी
सम्पादक: न्यायाचार्य पं. श्रीहरिदास शास्त्री
प्रकाशक: श्रीगदाधरगौरहरि प्रेस, वृन्दावन
पुस्तक का परिचय:
यह ग्रंथ वायुपुराण में उल्लिखित श्रीगौरांगचन्द्रोदय अध्याय पर आधारित है, जिसमें भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु के आविर्भाव और महिमा का गूढ़ दार्शनिक व आध्यात्मिक वर्णन किया गया है।
ग्रंथ की मुख्य विशेषता है – "अनर्पितचरीं चिरात्..." इस प्रसिद्ध श्लोक पर श्रीमज्जीव गोस्वामी विरचित गूढ़ टीका तथा श्रीरामनारायण गोस्वामी कृत प्रभाटीका, जो पाठक को गहरे वैष्णव दर्शन में प्रवेश कराती है।
🔹 मूल स्रोत: वायुपुराण से उद्धृत श्रीगौरांगचन्द्रोदय
🔹 टीकाकार:
श्रीरामनारायण गोस्वामी द्वारा रचित प्रभाटीका
श्रील जीव गोस्वामी द्वारा रचित विशिष्ट दार्शनिक टीका
चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य का पुराणोक्त प्रमाण
श्रीजीव गोस्वामी के दार्शनिक दृष्टिकोण से व्याख्या
तात्त्विक वैष्णव साहित्य के गंभीर पाठकों, शोधकर्ताओं और भक्तों के लिए अत्यंत उपयोगी
श्रीहरिदास शास्त्री जी की शास्त्रीय संपादन शैली से युक्त विशुद्ध और प्रामाणिक ग्रंथ
पं. श्रीहरिदास शास्त्री
न्याय-वैशेषिक, मीमांसा, वेदान्त, काव्य, व्याकरण, तर्क आदि शास्त्रों के परम पंडित
‘विद्यारत्न’, ‘वैष्णवदर्शनतीर्थ’ आदि उपाधियों से विभूषित
🔹 प्रकाशन स्थल:
श्रीगदाधरगौरहरि प्रेस
श्रीहरिदास निवास, कालिवह, वृन्दावन (जिला मथुरा
पेपरबैक
भाषा: संस्कृत मूल व हिन्दी/संस्कृत टीका सहित
प्राचीन वैष्णव साहित्य प्रेमियों के लिए एक दुर्लभ रत्न
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