श्रीभक्तिरसामृतशेषः (Bhakti-rasamrita-sesa) श्रीमज्जीवगोस्वामिविरचित
श्रीभक्तिरसामृतशेषः" श्रीमद् जीव गोस्वामी द्वारा रचित एक अत्यंत महत्वपूर्ण वैष्णव ग्रंथ है, जो श्रीरूप गोस्वामी कृत "भक्तिरसामृतसिन्धु" के सिद्धान्तों को और विस्तार से प्रस्तुत करता है। यह ग्रंथ रसानुभूति, भक्ति की विभिन्न अवस्थाएँ, साधक की पात्रता एवं भक्ति की श्रेष्ठता का गूढ़ विवेचन करता है।
मुख्य विशेषताएँ:
🔸 रसमय भक्ति की शास्त्रीय व्याख्या
🔸 संस्कृत मूल पाठ सहित सरल हिन्दी टीका
🔸 श्रीचैतन्य महाप्रभु के भक्तिवाद पर आधारित तत्त्वचिंतन
🔸 जीव गोस्वामी की दार्शनिक दृष्टि का अद्भुत प्रतिबिम्ब
🔸 हरिदास शास्त्री जी द्वारा प्रमाणिक सम्पादन
यह ग्रंथ उन साधकों एवं विद्यार्थियों के लिए अनमोल निधि है, जो श्रीगौड़ीय भक्ति दर्शन एवं भक्तिरस के गूढ़ तत्वों को समझना चाहते हैं।
इस ग्रंथ की विशेषताएँ:
1. भक्तिरस का गूढ़ विवेचन:
यह ग्रंथ श्रीरूप गोस्वामी के "भक्तिरसामृतसिन्धु" के सूत्रों को आगे विस्तार देने वाला है। इसमें रसानुभूति, भक्ति की अवस्थाएँ, तथा साधक की प्रवृत्तियों का विश्लेषण मिलता है।
2. शास्त्रीय शैली में रचना:
यह ग्रंथ संस्कृत में श्लोकबद्ध शैली में है, जो तर्क और शास्त्रप्रमाण के आधार पर भक्ति का विवेचन करता है।
3. जीव गोस्वामी का दर्शन:
श्रीजीव गोस्वामी, जो श्रीचैतन्य महाप्रभु के परमार्थिक सिद्धान्तों के महान आचार्य हैं, उन्होंने इसे शुद्ध वैष्णव सिद्धान्तों के आलोक में लिखा
4. हरिदास शास्त्री जी द्वारा सम्पादन:
वृन्दावन के प्रमुख विद्वान श्री हरिदास शास्त्री जी ने इस ग्रंथ का प्रस्तुतीकरण या प्रकाशन किया, जिससे आधुनिक पाठकों को इसकी सामग्री सुलभ हो सकी।
Hindi - (Hardcover)