श्री श्री उज्जवल नीलमणि (संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद) Sri Ujjavala Nilamani
श्रीउज्ज्वलनीलमणि ग्रन्थ का द्वितीय संस्करण उज्ज्वलरसाधिकारी रसिकों के करकमलों में सादर समर्पित करते हुए हर्षोल्लास का अनुभव हो रहा है।
भगवत् श्रीश्रीकृष्णचैतन्यदेव के नित्य-प्रियपार्षद, भक्तिरस के आद्य प्रस्थापनाचार्य श्रीपाद रूपगोस्वामि विरचित श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु तथा श्रीउज्ज्वलनीलमणि ग्रन्थरत्न श्रीचैतन्यवैष्णव सम्प्रदाय आस्वादित रसशास्त्र के वेदस्वरूप हैं। स्वयं-भगवान् व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण जिस परमोन्नत उज्ज्वलरसमयी निजविषयक भक्ति-सम्पत्ति को करुणावश प्रदान करने के लिए जगत् में अवतीर्ण हुए थे, उनकी कृपाशक्ति सुधा से अभिषिक्त चैतन्यमनोभीष्ट-स्थापक श्रीगोस्वामिपाद ने उस चिन्मय मधुररस को इन दो रचनाओं में अशेष-विशेष रूप से समाविष्ट कर रसिक-समाज को चिर-कृतार्थ कर दिया है।
श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु में कृष्ण भक्तिरस निष्पत्ति के मुख्य उपकरणों के साथ शान्त, दास्य, सख्य, तथा वात्सल्य रसों का सविस्तार विश्लेषण किया गया है, किन्तु परम रहस्यमय सर्वरस-सम्राट् मधुर या श्रृंगाररस को अति रहस्यमय जानकर श्रीपाद ने पृथक् स्वर्णिम सम्पुट में सुरक्षित रखा, वह दिव्य श्रृंगाररस स्वर्णिम सम्पुट है-श्रीउज्ज्वलनीलमणि। श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु का उत्तरांश होते हुए भी इसे रसवेत्ताओं ने उज्ज्वल रस का विज्ञान-शास्त्र माना है। उन्नतोज्ज्वलरसमयी कृष्णप्रेम-भक्ति का ऐसा सोदाहरण तथा उदार परिवेषण जगत् में कहीं भी देखने को नहीं मिलता। श्रीचैतन्य-सम्प्रदाय के दर्शन का पर्य्यवसान इसी उज्ज्वलरस तत्त्व में है। रागानुगा-भक्तिमार्गीय मधुररस-निष्ठ निपुण साधकों का ही एकमात्र सर्वस्व है यह।





















