श्रीभक्तमाल (Sri BhaktMal) By Goswami Sri Nabha Ji (Set Of 4 Vols.)
श्रीरामानन्द पुस्तकालय द्वारा प्रकाशित यह "श्रीभक्तमाल" ग्रंथ, श्रीनाभा जी द्वारा रचित एवं श्रीप्रियादासजी की कविताओं सहित, भक्ति-रस से ओतप्रोत है। श्रीगणेशदासजी "भक्तमाली" द्वारा सरल हिन्दी टीका के साथ प्रस्तुत, यह ग्रंथ भक्ति-साहित्य के प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। रामायणी श्रीगोवर्धनदासजी की व्याख्या एवं जगन्नाथदास शास्त्री जी के संपादन में यह संस्करण विशेष रूप से पठनीय है।
सम्पूर्ण ग्रन्थ में भक्त, भक्ति, भगवन्त और गुरु के गुण, स्वरूप, स्वभाव और प्रभावादि का विशद विवेचन किया गया है। ग्रन्थ के पूर्वार्द्ध में परात्पर प्रभु के चौबीस अवतारों एवं श्रीरामभद्रजू के श्रीचरण-चिह्न वर्णन के साथ सतयुग, त्रेता और द्वापर के भक्तों की पुनीत चर्चा की गई है तथा उत्तरार्द्ध कलियुग के भक्तों की पवित्र गाथा से परिपूर्ण है। भक्तों का चरित्र वर्णन करते हुए ग्रन्थकार श्रीनाभाजी एवं टीकाकार श्रीप्रियादासजी ने नवधा, दशधा, प्रेमा, परा आदि भक्ति के विविध स्वरूपों, ज्ञान, वैराग्य, तप, त्याग, शील, सदाचार, सत्य, अहिंसा, क्षमा, दया, समानता, अमानता आदि सद्गुणों, भक्तों की रहनी, भक्तों के भगवान के प्रति दिव्य-भव्य-भाव, उनकी सन्निष्ठा तथा भगवान की भक्तवत्सलता, भक्तप्रियता, सौलभ्य, सौशील्यू, कृपालुता आदि दिव्य-गुणों का बड़ा हृदयस्पर्शी वर्णन किया है
Published by Sri Ramananda Pustakalaya, this revered edition of "Sri Bhaktamala"—originally composed by Sri Nabhaji Ji —includes devotional verses by Śrī Priyādāsa Jī. Enriched with a lucid Hindi commentary by Śrī Gaṇeśadāsa Jī "Bhaktamali" of Govardhan, it serves as a timeless gem for devotees of bhakti literature. Enhanced with explanatory notes by Ramayani Sri Govardhanadas Jī (Citrakūṭ) and edited by Jagannathadasa Sastri Ji, this edition is particularly valuable for serious readers and spiritual seekers.





















