श्रीमद्भगवतीय चतु: श्लोकी -Chatuhshloki Bhagavat | Srila Narayana Gosvami Mahara
(श्रीमद्भागवत द्वितीय स्कन्ध, नवम अध्याय, श्लोक 29 से 38 तक)
अन्वय, अनुवाद, तथ्य सहित तथा श्रीमध्वाचार्यपाद, श्रीविजयध्वज तीर्थपाद, श्रील जीव गोस्वामीपाद,
श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामीपाद, श्रील श्रीनिवासाचार्यपाद, श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर, श्रीश्रीधरस्वामीपाद, श्रीवल्लभाचार्यपाद, श्रीवीरराघवाचार्यपाद, श्रीशुकदेवपाद,
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर, श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर (प्रभुपाद) आदि आचार्यों की टीकाओं, विवृतियों और उनके भावानुवाद सहित
By Srila Bhaktivedanta Narayana Gosvami Maharaja
श्रीमद्भागवतम् के हृदय के रूप में विख्यात चतु:श्लोकी वे चार मुख्य श्लोक हैं जिनमें भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ब्रह्माजी को सम्पूर्ण आध्यात्मिक तत्त्व का सार प्रदान करते हैं।
यह संक्षिप्त लेकिन गहन ग्रंथ Srila Narayana Gosvami Maharaja द्वारा दिए गए सुलभ, गूढ़-तत्त्वपूर्ण और रसपूर्ण व्याख्यानों का अनमोल संग्रह है।
✨ पुस्तक की विशेषताएँ
चतु:श्लोकी भागवत का प्रामाणिक अनुवाद और भावार्थ
दार्शनिक गहराई को सरल, हृदयस्पर्शी भाषा में प्रस्तुत
भगवान, जीव और माया के संबंधों का स्पष्ट एवं तर्कसंगत निरूपण
श्रील नारायण गोस्वामी महाराज के मधुर, तत्त्वपूर्ण प्रवचनों पर आधारित
साधकों के लिए स्मरण-योग्य, अध्ययन-योग्य और मनन-योग्य ग्रंथ
📚 यह पुस्तक किनके लिए है?
श्रीमद्भागवतम् का सार समझना चाहने वाले साधक
भक्तिरस एवं तत्त्वज्ञान में रुचि रखने वाले पाठक
Gaudiya Vaishnavism के विद्यार्थियों व अध्येताओं
मेमोराइज़ेशन, सत्संग, जप-सहायक अध्ययन के लिए उत्तम
🕉️ सार
चतु:श्लोकी में भगवान स्वयं यह प्रकट करते हैं कि—
सब कुछ मुझसे आरंभ, मुझमें स्थित और मुझमें ही लीन है।
यह पुस्तक आपको उन चार दिव्य श्लोकों के तत्त्व, रहस्य और उनके व्यावहारिक अनुप्रयोग से परिचित कराती है।





















